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पैदा होते ही चल बसे हजारों शिशु

राजेंद्र राठौर/छत्तीसगढ़

केन्द्र व राज्य की सरकार ने शिशुओं के संरक्षण व जननी की सुरक्षा के लिए भले ही कई योजनाएं तैयार की हैं, लेकिन इन योजनाओं का धरातल पर सही क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण जांजगीर-चांपा जिले में देखने को मिल रहा है, जहां पिछले पांच वर्षो में 3000 से भी अधिक बच्चों ने जन्म से 5 वर्ष के भीतर दुनिया को अलविदा कहा है। प्रसव के दौरान आवश्यक चिकित्सकीय सुविधाएं नहीं मिलने से 66 माताओं ने भी दम तोड़ा है।

ये तो महज वे आंकड़े हैं, जो स्वास्थ्य विभाग के रिकार्ड में हैं, जबकि ऐसे कई मामलों का तो विभाग को पता तक नहीं चल पाता। न ही वे चिकित्सा विभाग के रजिस्टर में दर्ज हो पाते हैं। दिसम्बर माह को शिशु संरक्षण के रूप में मनाया जा रहा है। यानी साल भर में केवल एक माह की जागरूकता और कार्यक्रम तथा बाकी दिनों में ऐसे कई अस्पताल है, जहाँ डाक्टरों को लोग खोजते रह जाते हैं, लेकिन उनका पता नहीं चल पाता। साथ ही जरूरतमंद लोग दवा और अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तरस जाते हैं। ऐसा नहीं हैं कि सरकार इसके लिए ध्यान नहीं दे रही है, बल्कि केन्द्र और राज्य सरकार ने तो इसके लिए कई योजनाएं संचालित कर रखीं है, लेकिन कई खामियों की वजह से ये योजनाएं कागजों से धरातल पर आते तक चव्वनी भर रह जाती हैं। शेष 75 फीसदी कागजों में ही खसोट लिया जा रहा है। प्रसव के दौरान मां और बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए सरकार ने कई तरह की योजनाएं बनाई है और इसके क्रियान्वयन का जिम्मा स्वास्थ्य विभाग को सौंपा गया है, ताकि योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों को मिल सके। कमोबेश महती योजनाओं के प्रति अधिकारियों की उदासीनता कहा जाए या सरकार की नजरअंदाजी, जिले में शिशुओं के मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों पर गौर करे तो जिले में पिछले 5 वर्षो में 3097 बच्चों की मौत हुई है। इनमें से 1674 बच्चे ऐसे हैं, जिनकी सांसे जन्म लेने के 27 दिन के भीतर थम गई हैं। 0 से 27 दिन तक के बच्चों की सर्वाधिक मौत वर्ष 2006-07 में हुई है। इस वर्ष 423 बच्चों ने दम तोड़ा था, जबकि वर्तमान वर्ष में अब तक 238 बच्चों की जानें जा चुकी है। इधर 28 दिन से 1 साल तक के 629 बच्चों ने दुनिया को अलविदा कहा है, जबकि 1 से 5 साल के भीतर के 794 बच्चों ने उचित संरक्षण के अभाव में दम तोड़ा है। साथ ही प्रसव के दौरान 66 माताओं की मौत भी हुई है। विभागीय आंकड़ों के मुताबित मां व बच्चे की सबसे ज्यादा मौत डभरा, जैजैपुर, बम्हनीडीह विकासखण्ड क्षेत्र में हुई है। इस तरह शिशु और माताओं की मौत का ग्राफ हर साल बढ़ता जा रहा है। इसकी प्रमुख वजह प्रचार प्रसार में कमी और योजना के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारियों की लापरवाही है। मसलन सरकारी योजनाओं से संबंधित होर्डिग्स-पोस्टर उन क्षेत्रों में लगाए गए हैं, जहां रहने वाले लोगों को वाकई इन योजनाओं से किसी तरह का सरोकार नहीं है। बहरहाल स्वास्थ्य विभाग द्वारा शिशु और माताओं के मौत का तैयार किया गया अपना आंकड़ा भले ही सही हो सकता है, लेकिन वास्तविक आंकड़ा विभाग के रजिस्टर में शायद ही दर्ज किया जा रहा होगा।

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