औद्योगिक क्षेत्र में विकास की असीम संभावनाएं लिए नित प्रगति के सोपान तय करने वाले जांजगीर-चांपा जिले की जनसंख्या पिछले एक दशक में दोगुनी हुई है। आगामी 2020 तक इस जिले की जनसंख्या में लगभग 10 से 12 लाख तक इजाफा होने का अनुमान लगाया जा रहा है। इसकी वजह जिले में व्यापक पैमाने पर लग रहे पावर प्लांट व अन्य औद्योगिक इकाईयों को माना जा रहा है। औद्योगिक विकास के साथ ही लगातार शुरू हो रहे नए तकनीकी शिक्षा संस्थानों ने जिले को काफी विकसित किया है।
बारह वर्ष पूर्व 25 मई 1998 को बिलासपुर से विभाजित होने के बाद जांजगीर-चांपा जिले में तकनीकी शिक्षा संस्थानों की कमीं थी। शिक्षा के नाम पर केवल एक बुनियादी प्रशिक्षण संस्थान था। इसके बाद जिला प्रशासन व आमजन के सहयोग से जिले ने विकास की गति पकड़ ली, तो कई आईटीआई खुले। वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबित 4 लाख 46 हजार 674 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फेले जिले की जनससंख्या 13 लाख 16 हजार 140 थी। इसमें 2 लाख 37 हजार 904 अनुसूचित जाति तथा 2 लाख 10 हजार 582 अनुसूचित जानजाति वर्ग के लोग थे। प्रारंभ से ही कृषि प्रधान जिले के रूप में प्रदेश में अपनी पहचान बना चुके जांजगीर-चांपा के गांवों में हर साल धान का बम्पर उत्पादन होता है। इसकी मुख्य वजह यह है कि इस जिले की 11966 हेक्टेयर भूमि लघु सिंचित योजना के अंतर्गत निर्मित सिंचाई संसाधन से परिपूर्ण है। नौकरी-पेशा वर्ग को छोड़ दिया जाएं, तो जिले के ज्यादातर लोग खेती पर ही आश्रित है। जिले के कुछ क्षेत्रों में किसान दो फसल लेते है, जबकि जिन क्षेत्र में नहर की सुविधा नहीं है, वहां के किसान खरीफ फसल उत्पादन के बाद रोजगार की तलाश में दीगर राज्यों में पलायन कर जाते हैं। विकास की दृष्टिकोण से खासकर जिले का मालखरौदा, जैजैपुर, डभरा व पामगढ़ के अलावा बलौदा विकासखंड का कुछ क्षेत्र अत्यंत पिछड़ा हुआ है, जहां की साक्षरता का प्रतिशत 50 फीसदी के आसपास है। इन क्षेत्रों में शिक्षा के अलावा रोजगार मुहैया कराने के लिए प्रशासन को उचित कदम उठाने की जरूरत है। हालांकि पिछले कुछ वर्षो में जिले का विकास काफी तेजी से हुआ है, जिसके पीछे औद्योगिक इकाईयां के विस्तार को माना जा रहा है। इस जिले में कृषि व शिक्षा के साथ ही औद्योगिक विकास की असीम संभावनाएं हैं।
कलेक्टर ब्रजेश चंद्र मिश्र ने बताया कि नया जिला होने के कारण यहां दिक्कतें तो बहुत है, लेकिन उन दिक्कतों को दूर करने का पूरी तरह से प्रयास किया जा रहा है, ताकि आमलोगों के कामकाज व जीवनयापन आसानी से हो सके। औद्योगिकीकरण के कारण जिले का विकास पिछले दो वर्षो में तेजी से हुआ है। बढ़ते विकास को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्ष 2020 तक जिले की जनसंख्या वर्तमान यानी लगभग 18 लाख से दोगुनी होगी। उन्होंने बताया कि उद्योग लगने के कारण ग्रामीणों के पलायन में काफी कमीं आई है। आगामी वर्षो में जब सभी औद्योगिक इकाईयों का काम शुरू हो जाएगा, तब कुशल श्रमिकों की भारी कमी होगी और उद्योगपतियों को दीगर राज्यों से मजदूर बुलवाकर काम करवाना पड़ेगा। इसके लिए जिला प्रशासन द्वारा हर विकासखंड मुख्यालय में आईटीआई की स्थापना का प्रयास किया जा रहा है। कुछ क्षेत्रों में आईटीआई संचालित है, जहां अल्पकालीन कोर्स के माध्यम से ग्रामीण व गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। कलेक्टर मिश्र ने बताया कि औद्योगिक विकास के कारण आगामी एक-दो वर्षो में परिवहन की सबसे बड़ी समस्या होगी, इसके मद्देनजर मास्टर प्लॉट तैयार किया जा रहा है। इसके अलावा पेयजल और पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने के लिए भी कार्ययोजना बनाई जा रही है। कलेक्टर मिश्र ने बताया कि जिले में इंजीनियरिग कालेज की अत्यंत जरूरत है, जिसेयहां खोलने की घोषणा मुख्यमंत्री ने कर भी दी है। इंजीनियरिंग कालेज के खुलने से जिले के युवाओं को स्थानीय औद्योगिक संयंत्रों में प्रतिष्ठित पद पर रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। उन्होंने बताया कि जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सक की कमी है। इस कमी को दूर करने के लिए प्रयास किया जा रहा है। आने वाले वर्षो में यहां नर्सिग कालेज खोलने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है, जिसकी स्वीकृति से चिकित्सा समस्या भी काफी हद तक दूर होगी। कृषि को बढ़ावा देने की दिशा में भी काम जारी है। किसानों को उन्नत कृषि व फसल उत्पादन के गुर सिखाने के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक अहम भूमिका निभा रहे हैं।
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