-राजेन्द्र राठौर/छत्तीसगढ़
जीवन शैली पर हावी आधुनिकता के साथ शहरों में खत्म होते खेल मैदान से बढ़ा इंडोर गेम्स का चलन युवाओं को अस्थमा का मरीज बना रहा है। हालात इतने खतरनाक हैं कि अस्थमा के कुल मरीजों में अब युवाओं और बच्चों की संख्या बड़ों से दोगुनी हो गई है। पिछले चार-पांच सालों की तुलना में अस्थमा के मरीजों की संख्या में दस से पंद्रह प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वर्तमान में विश्व भर के 30 करोड़ से भी ज्यादा लोग अस्थमा से पीड़ित हैं।
इस विषय पर आज इसलिए बात की जा रही है, क्योंकि 5 मई को विश्वभर में अस्थमा दिवस मनाया जा रहा है। विश्व अस्थमा दिवस की शुरुआत ग्लोबल इंटिवेटिव अस्थमा हेल्थ केयर ग्रुप द्वारा 1998 में की गई। स्पेन के वार्सिलोना में आयोजित विश्व अस्थमा दिवस की पहली बैठक में पैंतीस से अधिक देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसके बाद से प्रत्येक वर्ष विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाने लगा। एक सर्वे के मुताबित वर्तमान में विश्व में लगभग 30 करोड़ व भारत में 3 करोड़ लोग अस्थमा के रोगी हैं। बच्चों में यह रोग लगभग 10-15 प्रतिशत में होता है। इसका मुख्य कारण प्रदूषित वातावरण, आधुनिकीकरण और तेजी से बढ़ता औद्योगिकीकरण व तेजी से बदलती हुई दैनिक दिनचर्या ही है। अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जिसमें पर श्वास नली या इससे संबंधित हिस्सों में सूजन के कारण फेफड़े में हवा जाने वाले रास्ते में रूकावट आती है, जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है। जबकि शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए हवा का फेफड़ों से अन्दर बाहर आना-जाना जरुरी है। खासकर अप्रैल अंतिम व मई माह का पहला सप्ताह अस्थमा रोगियों के लिए घातक हो सकता है। इस दौरान फसलो की कटाई व अन्य पौधों से निकलने वाले परागकण व धूल भरी आंधी से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। मौसम में बदलाव के साथ ही फसलो की कटाई के दौरान निकलने वाले कण व परागकण वायुमंडल में मिल जाते हैं, जो अस्थमा रोगियों के लिए परेशानी पैदा करते हैं।
विशेषज्ञों की मानें तो खेल मैदान की कमी के चलते युवा इंडोर गेम्स को प्राथमिकता दे रहे हैं। इंडोर गेम्स के दौरान घर के पर्दे, गलीचे व कारपेट में लगी धूल उनके लिए बेहद खतरनाक साबित हो रही है। इससे उनमें एलर्जी और अस्थमा की समस्या हो रही है। इतना ही नहीं घर की चहारदीवारी में बंद रहने वाले युवा जब कॉलेज जाने के लिए घर से बाहर निकलते हैं तो वातावरण के धूल व धुएँ के कण से भी उन्हें एलर्जी होने की संभावना बढ़ जाती है। दरअसल, वायरल इंफेक्शन से ही अस्थमा की शुरुआत होती है। युवा यदि बार-बार सर्दी, बुखार से परेशान हों तो यह एलर्जी का संकेत है। सही समय पर इलाज करवाकर और संतुलित जीवन शैली से बच्चों को एलर्जी से बचाया जा सकता है। समय पर इलाज नहीं मिला, तो धीरे-धीरे वे अस्थमा के मरीज बन जाते हैं। अस्थमा का दवा के साथ यौगिक क्रियाओं से भी पूर्ण इलाज संभव है। योगाचार्यो की मानें तो श्वास प्रणाली के गड़बड़ होने से व्यक्ति अस्थमा की चपेट में आता है। बीमारी को दूर करने में अनुलोम विलोम प्राणायाम सर्वाधिक कारगर है। साथ ही सीतली व सूर्य भेदी प्राणायाम भी बीमारी रोकने में सहायक है।
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