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स्टाइलिश अदाकार थे फिरोज खान

आदमी और इंसान, मेला और धर्मात्मा जैसी बेहतरीन फिल्मों का निर्माण कर बालीवुड में अपनी खास जगह बनाने वाले स्टाइलिश अदाकार फिरोज खान आज भले ही लोगों के बीच नहीं है, लेकिन उनकी यादें उनके चाहने वालों के जेहन में है। फिल्म अभिनेता फिरोज खान एक सफल और अच्छे कलाकार के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ गए हैं।

फिरोज खान का जन्म 25 सिंतबर, 1939 को बेंगलूर में हुआ था। उनके दो भाई संजय खान (अभिनेता-निर्माता) और समीर खान (कारोबारी) हैं। उनकी एक बहन हैं, जिनका नाम दिलशाद बीबी है। वर्ष 1960 में उन्होंने फिल्म दीदी से अभिनय के करियर की शुरुआत की थी। अभिनय के लिहाज से फिरोज के लिए 70 का दशक खास रहा। इस दशक में उन्होंने आदमी और इंसान, मेला और धर्मात्मा जैसी बेहतरीन फिल्में दीं। इसी दशक में उन्होंने निर्माता-निर्देशक के रूप में अपना सफर शुरू किया। उनके इस सफर की शुरुआत फिल्म धर्मात्मा से हुई। वर्ष 1980 की फिल्म कुर्बानी से उन्होंने एक सफल निर्माता-निर्देशक के रूप में सभी को अपना कूव्वत का लोहा मनवाया।

कुर्बानी उनके करियर की सबसे सफल फिल्म रही। इसमें उनके साथ विनोद खन्ना भी प्रमुख भूमिका में थे। फिरोज एक बेहतरीन अभिनेता होने के साथ ही सफल निर्माता-निर्देशक थे। उन्हें फिल्म निर्माण के हर पहलू की बेहतरीन समझ थी। वह हमेशा नए प्रयोग करने की सोचते थे। फिरोज ने 80 के दशक में दयावान और जांबाज जैसी कामयाब फिल्में बनाई। वर्ष 1992 में यलगार के बाद उन्होंने कुछ वर्ष के लिए फिल्म निर्माण और अभिनय से विराम ले लिया। वर्ष 1998 में उन्होंने प्रेम अगन से अपने बेटे फरदीन खान को अभिनय की दुनिया में उतारा, लेकिन उनका यह प्रयास नाकाम रहा। इस फिल्म के बाद जानशीं भी बॉक्स ऑफिस पर विफल रही। उन्हें वर्ष 1970 में फिल्म आदमी और इंसान के लिए सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता का पुरस्कार दिया। वर्ष 2000 में फिरोज को लाइफटाइम अचीवमेंट का फिल्फेयर पुरस्कार दिया गया। वह आखिरी बार अनीस बज्मी की फिल्म वेलकम (2007) में नजर आए। फिरोज एक मझे हुए अभिनेता के साथ ही अपनी स्पष्ट राय रखने के लिए जाने जाते थे। कुछ वर्ष पहले उन्होंने पाकिस्तान की स्थिति को लेकर बयान दिया तो वहां के शासकों की नजर में वह चुभ गए। यही वजह रही कि उन्हें पाकिस्तान का वीजा न देने का फैसला हुआ। इसके बावजूद वह अपनी बेबाक राय पर अडिग रहे।लंबी बीमारी से जूझने के बाद 27 अप्रैल, 2009 को इस दुनिया को अलविदा कहने वाले फिरोज ने हिंदी सिनेमा में लगभग पांच दशक तक अभिनेता, निर्माता और निर्देशक रूप में यादगार सफर तय किया। उनका यह सफर बेहद कामयाब रहा और उन्होंने सिनेमा में अभिनय और फिल्म निर्माण की अलग लकीर खींची।

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